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दूरदर्शन 66 साल का हो गया: हमारी यादों का दोस्त

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DD  परिचय: 66 साल का सफर

 

15 सितंबर 1959, भारतीय टेलीविजन के इतिहास का वो दिन जब दूरदर्शन (डीडी) की शुरुआत हुई। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि यह छोटा सा ब्लैक-एंड-व्हाइट प्रसारण आगे चलकर लाखों भारतीयों की जिंदगी का हिस्सा बनेगा। आज जब हम कहते हैं #DDturns66, तो ये सिर्फ एक संस्था के जन्मदिन का जश्न नहीं है, बल्कि उन दोस्तों और दोस्तों का जश्न है, हमारी पिछलग्गू पार्टियां हैं।

 

दूरदर्शन केवल एक टीवी चैनल नहीं रहा, बल्कि यह एक भावना, संस्कृति और हमारी पहचान का हिस्सा बन गया।

 

शुरुआत: काले और सफेद से लेकर रंगीन तक

 

1959 में दिल्ली के एक छोटे से स्टूडियो से दूरदर्शन ने अपने प्रसारण की शुरुआत की। शुरुआती दिनों में सिर्फ हफ्ते में दो-दो दिन कुछ घंटे का ही प्रसारण होता था। लेकिन धीरे-धीरे यह अर्थ पूरे देश में फैल गया।

 

1982, एशियाई खेलों का वर्ष, दूरदर्शन के लिए मील्स का पत्थर साबित हुआ। इसी वर्ष भारत में पहली बार रंगीन प्रसारण की शुरुआत हुई। टीवी पर रंग-बिरंगे देखकर लोग हैरान भी हुए और खुश भी। यही वह दौर था जब दूरदर्शन ने पूरे भारत में अपनी जगह मजबूत की।

 

दूरदर्शन और भारतीय संस्कृति

 

दूरदर्शन ने सदैव भारतीय संस्कृति एवं परंपरा को बढ़ावा दिया है। कला लोक संगीत हो, नृत्य हो, शास्त्रीय कला हो या फिर देश की विविधता – हर चीज़ को डीडी ने मंच दिया।

 

गांव-गांव तक जब टीवी दिखाया गया तो दूरदर्शन ने पहली बार उन्हें अपने देश की राजधानी दिल्ली, संसद, राष्ट्रपति भवन और बड़े नेताओं की झलक दिखाई। 15 अगस्त और 26 जनवरी की परेड हो या गणेशोत्सव और विशेष कार्यक्रम – डीडी हर मशीन पर भारतीयता से भरपूर दर्शन आया।

 

वो प्रोग्राम जो यादों में बस गया

 

ऐसे कई धारावाहिक और शो हैं जो आज भी हमारी यादों में ताज़ा हैं।

 

रामायण (1987): जब रविवार की सुबह पूरा देश छुट्टी पर टीवी के सामने बैठा था।

 

महाभारत (1988): महाकाव्य के रूप में जिसे देखकर लोगों की आंखें भर आईं।

 

हम लोग (1984): भारत का पहला टेली-सीरियल आम परिवार की कहानी।

 

बुनियाद: विभाजन के दर्द को हर घर तक व्यक्ति वाला शो।

 

शक्तिमान (1997): बच्चों का पहला सुपरहीरो।

 

मालगुड़ी डेज़: आर.के. नारायण की कहानियों पर आधारित यह शो हर दिल को छू गया।

 

सुरभि: भारतीय संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम, होस्टिंग होस्टिंग रेनुका सहाणे और सिद्धार्थ काक ने की।

 

इनके अलावा चित्रहार, रंगोली, समाचार, खेल प्रसारण जैसे कार्यक्रम डीडी की पहचान बन गए।

 

समाचार और खेल: प्रतिष्ठा का पर्याय

 

उस दौर में जब प्राइवेट चैनल नहीं था, दूरदर्शन ही देश का सबसे बड़ा न्यूज़ नेटवर्क था। शाम 8 बजे का समाचार हर घर में बड़े ध्यान से देखा गया।

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इसी तरह खेलों में दूरदर्शन की भूमिका आज भी यादगार है। 80 और 90 के दशक में क्रिकेट मैच का मतलब दूरदर्शन था। कपिल देव की खोज, सचिन तेंदुलकर की फ्लोटिला और भारत की जीत-हार हर बार डीडी की स्क्रीन पर ही थी।

 

गांव-गांव तक पहुंच

 

भारत का गाँव जब पहली बार टीवी से चला, तो दूरदर्शन ही उनका पहला दोस्त बना। खेती-किसानी से जुड़े कार्यक्रम, शिक्षा एसोसिएटेड शो और स्वास्थ्य पर आधारित जानकारी – सब डीडी ने ही पहुंचाया। इस तरह डीडी ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं बल्कि शिक्षा और जागरूकता में भी अहम योगदान दिया।

 

तकनीकी बदलावों का सफर

 

दूरदर्शन का सफर तकनीकी बदलावों से भरा हुआ है।

 

1959: ब्लैक-एंड-व्हाइट प्रसारण की शुरुआत

 

1976: ऑल इंडिया रेडियो से अलग स्वतंत्र स्वतंत्र इकाई बनी

 

1982: रंगीन प्रसारण की शुरुआत

 

90 के दशक: सैटेलाइट चैनलों की शुरुआत और डीडी मेट्रो, डीडी स्पोर्ट्स जैसे नए चैनल

 

आज: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, ओटीटी और यूट्यूब पर भी भाग लें

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आज का दूरदर्शन: अब भी क्या पता है?

 

आज भले ही सैकड़ों चैनल और नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म आ चुके हैं, लेकिन दूरदर्शन की अपनी अलग जगह है। डीडी न्यूज और डीडी स्पोर्ट्स अब भी देश के दूर-दराज के जंगलों तक हैं, जहां इंटरनेट और केबल नहीं पहुंच पाते।

 

सरकारी मान्यता की जानकारी हो, शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम या फिर बड़े राष्ट्रीय कार्यक्रम – डीडी आज भी सबसे विश्वसनीय माध्यम है।

 

हमारी यादों का दोस्त

 

दूरदर्शन हमारे बचपन और जवानी की यादों से जुड़ा है। उसे याद आया जब रविवार की सुबह रामायण देखते समय घर की छतों पर सज़ा छायी हुई थी। या फिर जब क्रिकेट का मैच आता है तो पूरा मोआ एक ही घर में एकत्रित मैच देखता है।

 

आज शायद हम नेटफ्लिक्स और यूट्यूब पर डूब गए हैं, लेकिन दिल से मानेंगे कि दूरदर्शन जैसा कहीं और नहीं।

 

निष्कर्ष: 66 साल का गौरव

 

आज दूरदर्शन 66 साल का हो गया है। यह सिर्फ एक टीवी चैनल नहीं है, बल्कि भारत की संस्कृति, यादों और भावनाओं का खजाना है।

 

आने वाले समय में भी अगर दूरदर्शन नई तकनीक और बच्चों की पसंद के साथ कदम मिलाता है, तो यह हमेशा हमारे दोस्तों में जिंदा रहेगा।

 

तो आइये, आज हम सब मिलकर कहते हैं –

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– हमारे जीवन का हिस्सा बनने के लिए धन्यवाद दूरदर्शन! 🎉

 

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