हमारी एक ही गलती है कि हम दूसरों की बराबारी नहीं कर पाते

हमारी एक ही गलती है कि हम दूसरों की बराबारी नहीं कर पाते

हमारी एक ही गलती है कि हम दूसरों की बराबारी नहीं कर पाते

हमारी एक ही गलती है कि हम दूसरे की बराबरी नहीं कर पाते

 

मनुष्य स्वभाव से ही तुलना करने वाला प्राणी है। हम हमेशा खुद को दूसरों से बेहतर या कमतर मानने की होड़ में लगे रहते हैं। परंतु जब हम बराबरी की बात करते हैं, तो उसका अर्थ केवल दौलत, शोहरत या सामर्थ्य से नहीं होता। बराबरी का अर्थ है—सोच, समझ, दृष्टिकोण और मानवीय मूल्यों में समानता।

हमारी एक ही गलती है कि हम दूसरों की बराबारी नहीं कर पाते

कई बार हम खुद को किसी से कम आंक लेते हैं, यह सोचकर कि हमारे पास वह सब नहीं है, जो दूसरों के पास है। लेकिन क्या वास्तव में सफलता और खुशहाली की परिभाषा केवल बाहरी उपलब्धियों से तय होती है? शायद नहीं। असली बराबरी तब होती है जब हम किसी के विचारों, संवेदनाओं और संघर्षों को समझते हैं और उन्हें उसी दृष्टि से देखते हैं जैसे हम खुद को देखते हैं।

हमारी एक ही गलती है कि हम दूसरों की बराबारी नहीं कर पाते

दूसरों की बराबरी न कर पाना हमारे अंदर असुरक्षा की भावना को जन्म देता है। यह असुरक्षा हमें या तो हीन भावना की ओर ले जाती है या फिर अनावश्यक प्रतिस्पर्धा की तरफ। जबकि सच्ची बराबरी तब आती है जब हम अपने आत्मसम्मान को बनाए रखते हुए दूसरों की उपलब्धियों का सम्मान कर सकें।

 

बराबरी का मतलब किसी की नकल करना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि हर व्यक्ति की यात्रा अलग है। किसी की सफलता देखकर प्रेरित होना अच्छा है, लेकिन उसे ही अपने जीवन का मानक मान लेना अपने अस्तित्व की अवहेलना है।

 

इसलिए, यदि हमें वास्तव में दूसरों की बराबरी करनी है, तो सबसे पहले हमें अपने भीतर झांकना होगा। खुद की खूबियों को पहचानना होगा और समझना होगा कि जीवन की दौड़ में हर किसी की गति और दिशा अलग होती है। जब हम दूसरों की खुशियों और उपलब्धियों में ईर्ष्या के बजाय प्रेरणा पाएंगे, तभी हम सच्चे अर्थों में बराबरी कर पाएंगे।

 

क्योंकि बराबरी करने का असली अर्थ है—स्वीकार्यता, सम्मान और आत्मविश्वास।

 

 

 

 

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