सेवा परमो धर्मो-Service is the supreme religion
सेवा परमो धर्मः – एक प्रेरणादायक कथा
प्रस्तावना
सेवा परमो धर्मो
प्राचीन समय की बात है, जब भारत के एक छोटे से गाँव सुखपुर में एक महान संत स्वामी अचलानंद निवास करते थे। वे न केवल धार्मिक ग्रंथों के ज्ञाता थे, बल्कि अपने कर्मों से भी लोगों को सही राह दिखाते थे। उनका एक ही सिद्धांत था—”सेवा परमो धर्मः”, यानी सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।
गाँव के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे, लेकिन कुछ लोग यह मानते थे कि सेवा से ज्यादा महत्वपूर्ण धन और शक्ति होती है। इन्हीं में से एक था राजा विक्रमसेन, जो उस क्षेत्र का शासक था। वह बहुत बलशाली और बुद्धिमान था, लेकिन उसे केवल शक्ति और वैभव की चिंता रहती थी।
अहंकारी राजा और संत का संदेश
एक दिन राजा ने स्वामी अचलानंद को अपने महल में बुलाया और कहा, “स्वामी जी, मैं आपके बारे में बहुत सुनता हूँ। आप कहते हैं कि सेवा सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन मैं मानता हूँ कि शक्ति सबसे बड़ा धर्म है। क्या आप इसे गलत साबित कर सकते हैं?”
सेवा परमो धर्मो
स्वामी जी मुस्कुराए और बोले, “राजन, सेवा की शक्ति का अनुभव आपको स्वयं करना होगा। अगर आप तैयार हों, तो एक दिन मेरे साथ रहकर देखिए।”
राजा ने स्वीकृति दे दी, लेकिन मन ही मन सोच रहा था कि एक दिन की सेवा से कुछ नहीं बदलेगा।
सेवा का पहला अनुभव
अगले दिन भोर होते ही स्वामी अचलानंद राजा को अपने साथ गाँव के बाहर ले गए। वहाँ एक बूढ़ा व्यक्ति सड़क किनारे पड़ा था, जिसे किसी ने कई दिनों से भोजन नहीं दिया था। स्वामी जी ने राजा से कहा, “राजन, इसे अपने हाथों से भोजन कराइए।”
सेवा परमो धर्मो
राजा को यह काम बहुत छोटा लगा, लेकिन उसने आज्ञा मानते हुए भोजन कराया। जैसे ही बूढ़े व्यक्ति ने खाना खाया, उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने राजा का हाथ पकड़कर कहा, “भगवान तुम्हारा भला करे, बेटा! तुमने मुझे नया जीवन दिया है।”
राजा के हृदय में कुछ हलचल हुई, लेकिन उसने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया।
दूसरा अनुभव – गरीब किसान की सहायता
इसके बाद वे दोनों आगे बढ़े। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक गरीब किसान रो रहा था। पूछने पर पता चला कि उसकी पूरी फसल सूखे के कारण बर्बाद हो गई थी, और अब उसके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था।
स्वामी जी ने राजा से कहा, “राजन, क्या आप इसकी सहायता करेंगे?”
सेवा परमो धर्मो
राजा ने तुरंत अपनी पोटली से कुछ स्वर्ण मुद्राएँ निकालकर किसान को दे दीं। किसान ने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, आपने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूँगा!”
राजा को पहली बार लगा कि लोगों की सेवा करने से जो आनंद मिलता है, वह किसी युद्ध में विजय पाने से कहीं अधिक सुखद है।
असली परीक्षा – अज्ञात व्यक्ति की सेवा
शाम होते-होते वे दोनों जंगल के पास पहुँचे। वहाँ एक घायल व्यक्ति पड़ा था, जिसे कुछ डाकुओं ने लूट लिया था। स्वामी जी ने राजा से कहा, “राजन, इसे अपने कंधों पर उठाकर आश्रम तक ले चलिए।”
राजा को यह काम कठिन लगा, लेकिन उसने संत की बात मानकर व्यक्ति को अपने कंधों पर उठाया और चार कोस दूर आश्रम तक ले गया। वहाँ स्वामी जी ने उसकी मरहम-पट्टी की और उसे पानी पिलाया।
जब वह व्यक्ति होश में आया, तो राजा ने देखा कि वह कोई और नहीं, बल्कि उसका ही पुराना मित्र कुमारसेन था, जिसे वह वर्षों से ढूँढ रहा था। कुमारसेन ने बताया कि यदि राजा समय पर न पहुँचता, तो वह मर जाता।
राजा का हृदय परिवर्तन
अब राजा को अहसास हुआ कि सेवा वास्तव में सबसे बड़ा धर्म है। उसने स्वामी अचलानंद के चरणों में सिर झुकाया और कहा, “स्वामी जी, आज मैंने सेवा का सच्चा अर्थ जाना। अब मैं अपने जीवन का हर क्षण दूसरों की भलाई में लगाऊँगा।”
सेवा परमो धर्मो
उस दिन से राजा विक्रमसेन ने अपने राज्य में अनेक धर्मशालाएँ, अस्पताल और अन्नक्षेत्र बनवाए। वह स्वयं जरूरतमंदों की सेवा करता और दूसरों को भी प्रेरित करता।
उपसंहार
सेवा का यह संदेश पूरे राज्य में फैल गया और सुखपुर एक ऐसा स्थान बन गया, जहाँ हर कोई एक-दूसरे की मदद करता था। स्वामी अचलानंद का सिद्धांत “सेवा परमो धर्मः” पूरे राज्य की पहचान बन गया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शक्ति और धन से अधिक महत्वपूर्ण सेवा भाव है। सेवा ही सच्चा धर्म है, और वही जीवन को सार्थक बनाता है।
सेवा परमो धर्मो