लोभं पापं पापं मृत्यु
गाँव के एक छोटे से कस्बे में रमेश नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत मेहनती था, लेकिन उसके अंदर लोभ कूट-कूट कर भरा था। उसे हमेशा जल्दी अमीर बनने की चाह रहती थी।
एक दिन, उसे एक तांत्रिक मिला, जिसने उसे एक जादुई सिक्का दिया और कहा, “यह सिक्का जहाँ भी गिरेगा, वहाँ सोना निकलेगा, लेकिन याद रखना, लालच मत करना।” रमेश बहुत खुश हुआ और सिक्के को ज़मीन पर गिराया। जैसे ही उसने मिट्टी हटाई, वहाँ सच में सोने के कुछ टुकड़े निकले।
अब रमेश का लोभ और बढ़ गया। वह रोज़ सिक्के को ज़मीन पर गिराता और सोना निकालता। कुछ ही महीनों में वह बहुत धनी बन गया। लेकिन उसकी भूख खत्म नहीं हुई। उसने सोचा, “अगर मैं इस सिक्के को एक ही बार में बहुत गहराई तक गिराऊँ, तो सोने का बड़ा खजाना मिल सकता है!”
रमेश ने एक गहरी गुफा खोजी और सिक्का वहाँ गिरा दिया। जैसे ही उसने मिट्टी खोदनी शुरू की, गुफा अचानक धसक गई, और वह उसी में दबकर मर गया।
गाँव वालों ने जब यह देखा, तो समझ गए कि यह लोभ का ही परिणाम था। तभी से गाँव में यह कहावत प्रचलित हो गई— “लोभ पाप है, और पाप मृत्यु का कारण बनता है।”
शिक्षा:
अत्यधिक लालच अंततः विनाश का कारण बनता है। संतोष ही सबसे बड़ा धन है।