पैसा का गल्ला कभी जात पात का भेदवाव नहीं करता

पैसा का गल्ला कभी जात पात का भेदवाव नहीं करता

का गल्ला कभी जात पात का भेदवाव नहीं करता

 

पैसा का गल्ला कभी जात-पात का भेदभाव नहीं करता

 

भाग 1: एक नई शुरुआत

 

बिहार के छोटे से गाँव सरायपुर में, जहाँ जात-पात का भेदभाव गहराई तक फैला हुआ था, वहीं एक साधारण लड़का अर्जुन अपनी मेहनत और लगन से कुछ बड़ा करने का सपना देखता था। अर्जुन का जन्म एक निम्न जाति के परिवार में हुआ था, जिसके कारण समाज में उसे हमेशा नीची नजरों से देखा जाता था।

 

अर्जुन के पिता रामलाल गाँव के चौधरी के खेतों में मजदूरी करते थे। अर्जुन बचपन से ही देखता आ रहा था कि कैसे जात-पात के नाम पर इंसान को इंसान नहीं समझा जाता। लेकिन अर्जुन का मानना था कि इंसान की पहचान उसके काम और ईमानदारी से होती है, न कि जाति से।

 

जब अर्जुन बीस साल का हुआ, तो उसने ठान लिया कि वह गाँव छोड़कर शहर जाएगा और वहाँ कुछ बड़ा करेगा। उसके मन में एक सपना था—अपनी खुद की मिठाई की दुकान खोलने का। मिठाइयों के लिए उसकी माँ की बनाई हुई रेसिपीज़ गाँव में बहुत मशहूर थीं। अर्जुन सोचता था, “अगर माँ की बनाई मिठाइयों का स्वाद दुनिया तक पहुँचा सकूँ, तो शायद मेरी किस्मत भी बदल सकती है।”

 

भाग 2: संघर्ष का सफर

 

शहर पहुँचकर अर्जुन को समझ आ गया कि जिंदगी इतनी आसान नहीं है। जेब में बस कुछ ही पैसे थे। उसने एक मिठाई की दुकान में काम करना शुरू किया। सुबह से देर रात तक वह दुकान पर काम करता—सफाई, मिठाइयाँ बनाना, ग्राहकों से बात करना—सब कुछ।

 

धीरे-धीरे अर्जुन ने मिठाई बनाने की बारीकियों को सीख लिया। उसने देखा कि ग्राहक को क्या पसंद आता है, किस स्वाद की मिठाई ज्यादा बिकती है और दुकान को कैसे चलाया जाता है। लेकिन जात-पात का भेदभाव यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ रहा था। दुकान के मालिक अक्सर उसे ताने मारते थे, “तेरे जैसे लोग बस मजदूरी के लिए बने हैं, दुकान चलाना तेरे बस की बात नहीं।” अर्जुन चुपचाप सुनता और सोचता, “पैसा कमाना जाति नहीं देखता, सिर्फ मेहनत और हुनर देखता है।”

 

कुछ साल बाद, अर्जुन ने थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर एक छोटी-सी दुकान किराए पर ली। दुकान का नाम रखा—”मिठास“। उसका मकसद था, मिठाइयों के जरिए समाज में मिठास घोलना और भेदभाव की दीवारें तोड़ना।

 

भाग 3: मेहनत रंग लाती है

 

शुरू-शुरू में दुकान पर ज्यादा ग्राहक नहीं आते थे। लेकिन अर्जुन ने हार नहीं मानी। उसने अपनी माँ की खास रेसिपीज़ से मिठाइयाँ बनाईं। उसकी खास गुलाब जामुन और रसगुल्ला ने धीरे-धीरे लोगों का ध्यान खींचना शुरू कर दिया।

 

फिर एक दिन शहर के मशहूर बिजनेसमैन मिस्टर वर्मा वहाँ आए। उन्होंने अर्जुन की मिठाइयों का स्वाद लिया और दंग रह गए। “अरे, इतना बढ़िया स्वाद! यह तो किसी बड़े ब्रांड से कम नहीं,” उन्होंने तारीफ की। मिस्टर वर्मा ने अर्जुन को अपने होटल में मिठाइयाँ सप्लाई करने का बड़ा ऑर्डर दे दिया।

 

अर्जुन की दुकान चल निकली। पैसे का गल्ला हर दिन भरने लगा। अर्जुन ने देखा कि अब वही लोग, जो कभी उसकी जाति को लेकर ताने मारते थे, अब उसकी दुकान के सामने लंबी कतार में खड़े थे। पैसा कमाने और सफलता हासिल करने के लिए अर्जुन की मेहनत और हुनर ही असली पहचान बन गई थी।

 

भाग 4: समाज को जवाब

 

अर्जुन की मिठाई की दुकान अब एक ब्रांड बन चुकी थी। शहर के बड़े-बड़े लोग उसकी दुकान पर आते थे। लेकिन अर्जुन ने कभी अपने गाँव और वहाँ के लोगों को नहीं भुलाया। उसने अपने गाँव लौटकर वहाँ भी एक ब्रांच खोला। उद्घाटन के लिए गाँव के सभी लोगों को बुलाया, जिसमें गाँव के वही चौधरी भी थे, जिनके खेतों में अर्जुन के पिता ने मजदूरी की थी।

 

जब चौधरी ने देखा कि अर्जुन अब एक सफल व्यवसायी बन चुका है, तो उनके चेहरे पर शर्म और गर्व दोनों थे। अर्जुन ने सबके सामने कहा, “आज जो भी हूँ, अपनी माँ की रेसिपीज़, अपनी मेहनत और भगवान की कृपा से हूँ। जाति ने मुझे रोका जरूर, लेकिन मेरी मेहनत और पैसा कमाने की लगन ने मुझे आगे बढ़ाया। देखिए, पैसा का गल्ला कभी जात-पात का भेदभाव नहीं करता। वह बस आपकी मेहनत और हुनर को पहचानता है।”

 

भाग 5: एक नई सोच की शुरुआत

 

अर्जुन की यह कहानी पूरे गाँव और शहर में फैल गई। लोगों की सोच बदलने लगी। अर्जुन ने अपनी दुकान में काम करने के लिए अलग-अलग जातियों के लोगों को नौकरी दी। वह मानता था कि अगर समाज को बदलना है, तो सोच बदलनी होगी।

 

“मिठास” अब सिर्फ मिठाइयों की दुकान नहीं थी, बल्कि यह उस बदलाव की प्रतीक बन चुकी थी, जिसमें जात-पात का कोई भेदभाव नहीं था। अर्जुन की सफलता ने यह साबित कर दिया था कि इंसान की पहचान उसके काम और इरादों से होती है, न कि उसके जन्म से।

 

समाप्ति:

का गल्ला कभी जात पात का भेदवाव नहीं करता

अर्जुन की कहानी हमें यह सिखाती है कि पैसा कमाना जात-पात नहीं देखता। वह सिर्फ मेहनत, हुनर और सच्चाई देखता है। अर्जुन की तरह अगर हम भी अपने सपनों के लिए सच्ची लगन से मेहनत करें, तो समाज की पुरानी दीवारें अपने आप गिर जाएँगी और असली मिठास इंसानियत की होगी!

 

 

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