ज्ञानी लोग – wisdoms people

यह दुनिया केवल ज्ञानी लोगों के लिए है, मूर्खों के लिए नहीं

यह दुनिया केवल ज्ञानी लोगों के लिए है, मूर्खों के लिए नहीं

“ये दुनिया पढ़े-लिखों की है, मूरखों की नहीं” 

मोहन अब अपनी गलती समझ चुका था। उसने ठान लिया कि वह भी पढ़ाई करेगा और अपने जीवन में कुछ बड़ा करेगा। लेकिन गाँव में अच्छी शिक्षा का साधन नहीं था। उसने रवि से मदद मांगी।

रवि अब गाँव का मंत्री था, और उसने तुरंत एक विद्यालय खोलने की योजना बनाई। राजा से अनुमति लेकर उसने गाँव में एक पाठशाला शुरू करवाई, जहाँ सभी को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। मोहन भी वहाँ जाने लगा। शुरुआत में उसे कठिनाइयाँ हुईं, लेकिन उसकी लगन देखकर शिक्षक भी हैरान थे।

कुछ सालों बाद, मोहन पढ़-लिखकर एक बड़ा व्यापारी बन गया। उसने आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके अपना कारोबार फैलाया और गाँव के लोगों को भी रोजगार दिया। एक दिन, वही राजा जिसने उसे मूर्ख समझा था, अब उसके व्यापार की चर्चा कर रहा था।

मोहन ने एक सभा में कहा, “ज्ञान ही सबसे बड़ी शक्ति है। अगर मैं पहले ही समझ जाता कि ये दुनिया पढ़े-लिखों की है, तो शायद मेरी ज़िंदगी पहले ही बदल जाती!”

अब गाँव में शिक्षा का महत्व बढ़ चुका था, और रवि व मोहन दोनों मिलकर ज्ञान के दीप जलाने में लगे थे।

शिक्षा:

सीखने की कोई उम्र नहीं होती। अगर सही दिशा में मेहनत की जाए, तो कोई भी अपने जीवन को बदल सकता है।

 

रामनगर नाम का एक छोटा-सा गाँव था। वहाँ दो दोस्त रहते थे—रवि और मोहन। रवि बहुत पढ़ा-लिखा था, किताबें पढ़ना और नई चीजें सीखना उसकी आदत थी। दूसरी तरफ, मोहन को पढ़ाई में बिल्कुल रुचि नहीं थी। वह हमेशा कहता, “डिग्री से कुछ नहीं होता, असली हुनर ज़रूरी है!”

 

एक दिन गाँव के राजा ने घोषणा की कि जो भी अपने ज्ञान और बुद्धिमानी से एक अनोखा समाधान लाएगा, उसे दरबारी मंत्री बनाया जाएगा। यह सुनकर रवि बहुत खुश हुआ और पूरी मेहनत से तैयारी करने लगा। उसने राजा के दरबार में जाकर विज्ञान, गणित और इतिहास से जुड़े कई अनोखे तर्क रखे, जिससे राजा बहुत प्रभावित हुआ।

 

वहीं, मोहन को लगा कि वह अपनी हाज़िरजवाबी और अनुभव से राजा को प्रभावित कर देगा। लेकिन जब राजा ने उससे सवाल पूछे, तो वह कोई ठोस जवाब नहीं दे सका। राजा ने हँसते हुए कहा, “ज्ञान के बिना सिर्फ बातें बनाने से कुछ नहीं होता।”

 

रवि को मंत्री बना दिया गया, और उसने गाँव की तरक्की के लिए कई योजनाएँ बनाईं। उधर, मोहन को समझ आ गया कि “ये दुनिया पढ़े-लिखों की है, मूरखों की नहीं!” और उसने भी पढ़ाई शुरू कर दी।

 

शिक्षा:

सिर्फ हुनर ही नहीं, सही दिशा में ज्ञान और शिक्षा भी ज़रूरी है। बिना पढ़ाई के सफलता मुश्किल हो सकती है।

“ये दुनिया पढ़े-लिखों की है, मूरखों की नहीं” 

मोहन अब अपनी गलती समझ चुका था। उसने ठान लिया कि वह भी पढ़ाई करेगा और अपने जीवन में कुछ बड़ा करेगा। लेकिन गाँव में अच्छी शिक्षा का साधन नहीं था। उसने रवि से मदद मांगी।

रवि अब गाँव का मंत्री था, और उसने तुरंत एक विद्यालय खोलने की योजना बनाई। राजा से अनुमति लेकर उसने गाँव में एक पाठशाला शुरू करवाई, जहाँ सभी को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। मोहन भी वहाँ जाने लगा। शुरुआत में उसे कठिनाइयाँ हुईं, लेकिन उसकी लगन देखकर शिक्षक भी हैरान थे।

कुछ सालों बाद, मोहन पढ़-लिखकर एक बड़ा व्यापारी बन गया। उसने आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके अपना कारोबार फैलाया और गाँव के लोगों को भी रोजगार दिया। एक दिन, वही राजा जिसने उसे मूर्ख समझा था, अब उसके व्यापार की चर्चा कर रहा था।

मोहन ने एक सभा में कहा, “ज्ञान ही सबसे बड़ी शक्ति है। अगर मैं पहले ही समझ जाता कि ये दुनिया पढ़े-लिखों की है, तो शायद मेरी ज़िंदगी पहले ही बदल जाती!”

अब गाँव में शिक्षा का महत्व बढ़ चुका था, और रवि व मोहन दोनों मिलकर ज्ञान के दीप जलाने में लगे थे।

शिक्षा:

सीखने की कोई उम्र नहीं होती। अगर सही दिशा में मेहनत की जाए, तो कोई भी अपने जीवन को बदल सकता है।

 

 

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