खेजड़ली बलिदान दिवस

87 / 100

खेजड़ली बलिदान दिवस: पर्यावरण संरक्षण का अनोखा इतिहास

 

खेजड़ली बलिदान दिवस केवल एक घटना नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण, आस्था और मानवता के अद्वितीय उदाहरण का प्रतीक है।
खेजड़ली बलिदान दिवस केवल एक घटना नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण, आस्था और मानवता के अद्वितीय उदाहरण का प्रतीक है।

खेजड़ली बलिदान दिवस

परिचय
खेजड़ली बलिदान दिवस (खेजरली बलिदान दिवस) भारत के पर्यावरण इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस दिन भारत और विशेष रूप से राजस्थान के जोधपुर के खेजड़ली गांव में 1730 में अद्भुत शहीद बलिदान की याद आई, जब 363 बिश्नोई स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। यह घटना एक क्षेत्र विशेष की नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है।

खेजड़ली बलिदानपीठ
सन 1730 में जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने अपने महल के निर्माण के लिए खेजड़ली गांव के खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) के वृक्षों को काटने का आदेश दिया। जब सैनिकों ने पेड़ काटने की शुरुआत की, तो बिश्नोई समाज की अमृता देवी आगे आईं और पेड़ों की रक्षा के लिए अपना मोर्चा संभाला। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्ता जान” (अगर सिर काटने वाले से पेड़ बचाता है, तो यह सौदा भी सस्ता है)। उनकी इस निद्रा ने पूरे बिश्नोई समाज को प्रेरित किया और एक-एक कर 363 लोगों ने पेड़ों की रक्षा में प्राण-बलिदान किया।

इतिहास और घटना
इस संघर्ष में अमृता देवी और अन्य बिश्नोई लोगों ने पेड़ों से कटान को स्वीकार किया, लेकिन पेड़ों के काटने का विरोध किया। यह त्याग न केवल भारत बल्कि विश्व में अहिंसावादी पर्यावरण आंदोलन का पहला ऐतिहासिक उदाहरण है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु के बाद राजा अभय सिंह ने पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी और बिश्नोई समाज के आगे नतमस्तक हो गए।

खेजड़ली बलिदान दिवस

महत्व
खेजड़ली बलिदान दिवस समाज को पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण का महत्व समझाता है। यह घटना यह संदेश भेजती है कि प्रकृति की रक्षा के लिए कोई भी कीमत बड़ी नहीं है। अपनी संस्कृति और आस्था के लिए बिश्नोई समाज का यह अहिंसक आंदोलन न केवल पर्यावरण प्रेमियों की प्रेरणा बन गया है, बल्कि सामाजिक वैयक्तिकता में भी इसकी गूंज है।

घटना व वृक्ष मेला
खेजड़ली पवित्र दिवस हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी (2025 में 2 सितंबर) को मनाया जाता है। इस मौके पर खेजड़ली गांव में वृक्ष मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। पवित्र स्थल पर रात्रि पर्यावरण महोत्सव और सुबह ‘हवन’ का कार्यक्रम होता है, जिसमें प्रेमी, बिश्नोई समाज और विभिन्न क्षेत्र के लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। मेले में पर्यावरण संरक्षण विषय पर व्याख्यान, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनी का आयोजन होता है।

पर्यावरण आंदोलन में योगदान
खेजड़ली साख ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को पर्यावरण संरक्षण की राह दिखाने का अहिंसक तरीका अपनाया। इसे विश्व का पहला हरित आंदोलन भी कहा जाता है। आज भी बिश्नोई समाज और अन्य समुदायों के रक्षा के लिए संकल्प का स्रोत बना है।

खेजड़ली बलिदान दिवस केवल एक घटना नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण, आस्था और मानवता के अद्वितीय उदाहरण का प्रतीक है।
खेजड़ली बलिदान दिवस केवल एक घटना नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण, आस्था और मानवता के अद्वितीय उदाहरण का प्रतीक है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top