इमानदारी बहुत बड़ी चीज़ है !
इमानदारी बहुत बड़ी चीज़ है
इमानदारी सबसे बड़ी चीज़
(एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी)
गाँव पिपलिया अपनी हरियाली और सीधी-सादी जिंदगी के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। यहाँ के लोग ईमानदारी और सच्चाई को सबसे बड़ा गुण मानते थे। इसी गाँव में रामू नाम का एक गरीब किसान रहता था। रामू के पास जमीन ज्यादा नहीं थी, बस थोड़ी-सी खेती से ही वह अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी सबसे बड़ी पूंजी थी—उसकी ईमानदारी।
रामू के दो बच्चे थे—गोपाल और मीरा। रामू ने हमेशा अपने बच्चों को सिखाया था, “ईमानदारी सबसे बड़ा धन है। पैसा चला जाएगा, लेकिन ईमानदारी रही तो सम्मान हमेशा मिलेगा।”
कठिनाई की घड़ी
एक साल पिपलिया गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। खेत सूख गए, अनाज की एक बूँद भी नहीं उगी। रामू के घर में खाने के भी लाले पड़ गए। वह दिन-रात मेहनत करता रहा, लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे थे।
इसी कठिन समय में, रामू को अपने पुराने दोस्त श्यामू की याद आई, जो शहर में बड़ा व्यापारी बन गया था। श्यामू ने रामू को कई बार शहर आकर नौकरी करने का न्योता दिया था, लेकिन रामू ने कभी अपने गाँव और जमीन को छोड़ने की नहीं सोची थी।
परिवार की भूख और बच्चों की मासूम आँखों ने आखिरकार रामू को मजबूर कर ही दिया। वह अपने परिवार से कहकर शहर की ओर निकल पड़ा।
शहर में परीक्षा
शहर पहुँचने पर श्यामू ने रामू का दिल खोलकर स्वागत किया।
“रामू! तुम आ ही गए। देखो, मेरे गोदाम में बहुत काम है। तुम्हें बस यहाँ अनाज की देखभाल करनी है। बदले में अच्छा पैसा मिलेगा।”
रामू खुशी-खुशी काम करने लगा। उसका काम था—अनाज का हिसाब-किताब रखना और ग्राहकों को समय पर अनाज देना।
कुछ ही दिनों में, श्यामू ने रामू पर पूरा भरोसा कर लिया। रामू ने भी अपनी ईमानदारी और मेहनत से सबका दिल जीत लिया।
ईमानदारी की परीक्षा
एक दिन की बात है। रामू गोदाम में अकेला था। तभी एक धनी व्यापारी वहाँ आया। उसने रामू से कहा,
“रामू भैया, अगर तुम मुझे बिना रसीद के अनाज बेच दो, तो तुम्हें दस हज़ार रुपये का इनाम दूँगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा।”
रामू चौंक गया। उसके मन में एक क्षण के लिए विचार आया—दस हज़ार रुपये! इस पैसे से तो मैं अपने बच्चों के लिए अच्छा खाना, कपड़े और किताबें ला सकता हूँ।
पर अगले ही पल उसे अपने पिता की कही बात याद आ गई—”ईमानदारी सबसे बड़ा धन है।”
रामू ने व्यापारी की ओर देखा और दृढ़ स्वर में कहा,
“माफ करिए साहब, मैं ऐसा काम नहीं कर सकता। यह गोदाम मेरे मालिक का है और मैं उनके भरोसे को कभी नहीं तोड़ सकता।”
व्यापारी ने बहुत कोशिश की, पैसे बढ़ाने का लालच भी दिया, लेकिन रामू अडिग रहा। आखिरकार व्यापारी हार मानकर चला गया।
ईमानदारी का इनाम
अगले दिन श्यामू ने रामू को बुलाया।
“रामू, क्या कल कोई व्यापारी यहाँ आया था?”
रामू ने सच्चाई बता दी।
श्यामू ने मुस्कराते हुए कहा,
“वह व्यापारी दरअसल मेरे ही कहने पर आया था। मैं तुम्हारी ईमानदारी की परीक्षा लेना चाहता था।”
रामू हैरान रह गया। श्यामू ने आगे कहा,
“रामू, तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। अब यह गोदाम तुम्हारा है। मैं तुम्हें अपना साझेदार बना रहा हूँ।”
रामू की आँखों में आँसू आ गए। उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी ईमानदारी इतनी बड़ी दौलत बन जाएगी।
गाँव की वापसी
रामू ने शहर में कुछ साल ईमानदारी से व्यापार किया। अब उसके पास खूब पैसा और सम्मान था। लेकिन उसका दिल तो गाँव में ही बसता था। वह अपने परिवार के साथ पिपलिया लौट आया।
गाँववालों ने जब रामू की सफलता की कहानी सुनी, तो सबने एक ही बात कही,
“देखो, ईमानदारी का फल कितना मीठा होता है।”
रामू अब गाँव के बच्चों को पढ़ाता था और उन्हें भी सिखाता था—
“ईमानदारी सबसे बड़ी चीज़ है। जब इंसान के पास यह गुण होता है, तो दुनिया की कोई ताकत उसे हार मानकर चला गया
इमानदारी सबसे बड़ी चीज़: बेईमानी का अंत
(एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी)
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गाँव पिपलिया की कहानी
गाँव पिपलिया अपनी हरियाली और सीधी-सादी जिंदगी के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। यहाँ के लोग ईमानदारी और सच्चाई को सबसे बड़ा गुण मानते थे। इसी गाँव में रामू नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके पास जमीन ज्यादा नहीं थी, बस थोड़ी-सी खेती से ही वह अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी सबसे बड़ी पूंजी थी—उसकी ईमानदारी।
रामू के दो बच्चे थे—गोपाल और मीरा। वह हमेशा अपने बच्चों को सिखाता था, “ईमानदारी सबसे बड़ा धन है। पैसा चला जाएगा, लेकिन ईमानदारी रही तो सम्मान हमेशा मिलेगा।”
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कठिनाई की घड़ी
एक साल पिपलिया गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। खेत सूख गए, अनाज की एक बूँद भी नहीं उगी। रामू के घर में खाने के भी लाले पड़ गए। परिवार की भूख और बच्चों की मासूम आँखों ने आखिरकार रामू को मजबूर कर ही दिया। वह अपने परिवार से कहकर शहर की ओर निकल पड़ा।
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शहर में दो रास्ते
शहर पहुँचते ही रामू ने अपने पुराने दोस्त श्यामू से मुलाकात की। श्यामू अब एक बड़ा व्यापारी बन चुका था। उसने रामू को अपने गोदाम में काम दे दिया। रामू का काम था—अनाज का हिसाब-किताब रखना और ग्राहकों को समय पर अनाज देना।
श्यामू के व्यापार का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी था कालू सेठ। कालू सेठ बेईमानी और धोखेबाज़ी से जल्द अमीर बनना चाहता था। उसका मानना था कि आज के समय में ईमानदारी से कोई बड़ा नहीं बन सकता। वह हमेशा श्यामू के धंधे को नुकसान पहुँचाने के तरीके ढूंढ़ता रहता था।
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ईमानदारी की असली परीक्षा
एक दिन कालू सेठ रामू के पास आया और बोला,
“रामू! अगर तुम मेरे लिए गोदाम से थोड़ा अनाज निकाल दो और रसीद में कम दिखा दो, तो मैं तुम्हें पचास हज़ार रुपये दूँगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा। सोच लो, पचास हज़ार में तुम्हारे बच्चे भूखे नहीं रहेंगे।”
रामू के मन में एक क्षण के लिए विचार आया—पचास हज़ार रुपये! लेकिन अगले ही पल उसे अपने पिता की कही बात याद आ गई—”ईमानदारी सबसे बड़ा धन है।”
रामू ने दृढ़ स्वर में कहा,
“साहब, मैं अपने मालिक के भरोसे को कभी नहीं तोड़ सकता। चाहे जितनी भी मुश्किल आ जाए, मैं बेईमानी नहीं करूँगा।”
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बेईमानी का भंडाफोड़
कालू सेठ रामू की ईमानदारी से हार नहीं मानना चाहता था। उसने चोरी से गोदाम से अनाज चुरवाने की योजना बनाई और अगले ही दिन आधी रात को अपने आदमियों को भेज दिया। लेकिन रामू को इसकी भनक लग गई। उसने तुरंत पुलिस को सूचना दी और खुद भी गोदाम की रखवाली करने पहुँच गया।
कालू सेठ के आदमियों को रंगे हाथों पकड़ा गया। पुलिस ने जब उनसे पूछताछ की, तो सारा सच सामने आ गया। कालू सेठ को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके बेईमानी के धंधे का अंत हो गया।
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ईमानदारी की जीत
श्यामू ने जब रामू की बहादुरी और ईमानदारी के बारे में सुना, तो उसने रामू को अपने व्यापार का साझेदार बना लिया। श्यामू ने कहा,
“रामू, तुमने साबित कर दिया कि ईमानदारी सबसे बड़ी चीज़ है। अब से यह गोदाम तुम्हारा भी है।”
रामू की आँखों में आँसू आ गए। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ईमानदारी उसे इतनी ऊँचाई पर ले जाएगी।
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गाँव की वापसी और बेईमानी का सबक
रामू ने कुछ वर्षों तक शहर में रहकर व्यापार में खूब नाम कमाया। लेकिन उसका दिल तो गाँव पिपलिया में ही बसता था। वह अपने परिवार के साथ गाँव लौट आया और वहाँ एक स्कूल खोला।
उस स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी दी जाती थी। रामू हमेशा बच्चों से कहता था:
> “ईमानदारी सबसे बड़ी चीज़ है। बेईमानी चाहे कुछ समय के लिए जीत जाए, लेकिन अंत में उसका पतन तय है। ईमानदार व्यक्ति भले धीरे-धीरे आगे बढ़े, लेकिन उसकी सफलता स्थायी होती है।”
कालू सेठ का नाम अब गाँव और शहर में बेईमानी के उदाहरण के रूप में लिया जाता था, जबकि रामू की कहानी ईमानदारी की मिसाल बन चुकी थी।
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कहानी से सीख
ईमानदारी देर से फल देती है, लेकिन उसका स्वाद मीठा होता है।
बेईमानी से कमाई दौलत अस्थायी होती है और उसका अंत बुरा ही होता है।
कठिनाइयों में भी अपने सिद्धांतों को न छोड़ना ही असली सफलता है।